नेपाल के रक्षामंत्री ने कहा- लिपुलेख पर भारतीय सेना प्रमुख का बयान इतिहास का अपमान, सेना को राजनीतिक बयान नहीं देने चाहिए
नेपाल के रक्षामंत्री ईश्वर पोखरेल ने अब भारतीय सेना प्रमुख की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि लिपुलेख मुद्दे पर भारतीय सेना प्रमुख का बयान हमारे देश के इतिहास का अपमान है।लिपुलेख मुद्दे पर नेपाल के विरोध पर सेना प्रमुख नरवणे ने कहा था कि यह विरोध किसी और के इशारे पर हो रहा है।
नेपाल के रक्षामंत्री ने न्यूजपेपर ‘द राइजिंग नेपाल’ से बातचीत करते हुए कहा, ‘‘इस तरह का बयान अपमानजनक है, इसमें नेपाल के इतिहास, सामाजिक विशेषता और स्वतंत्रता की अनदेखी की गई है। भारतीय सेना प्रमुख ने नेपाली गोरखा जवानों की भावनाओं को भी आहत किया है जो भारत की रक्षा के लिए अपना जीवन दांव पर लगा देते हैं। इससे उन्हें गोरखा बलों के सामने खड़ा होना भी मुश्किल हो गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सेना प्रमुख को ऐसे राजनीतिक बयान देना कितना पेशेवर है? हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं होता है। नेपाली सेना ऐसे मामलों पर नहीं बोलती है। पिछले कई मौकों पर, अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों में इसी तरह की बातचीत में कुछ कमियाँ रही होंगी। नेपाल के एक करीबी और दोस्त के रूप में भारत को सकारात्मक प्रतक्रिया देनी चाहिए। हम बातचीत में स्पष्ट शब्दों में सब कुछ सामने रखेंगे। इस तरह के डायलॉग दिमाग से नहीं बल्कि तथ्यों और सुबूतों के आधार किए जाएंगे।’’
पिछले हफ्ते नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भी कहा था कि दो पड़ोसी देशों के बीच सेना का बोलना सही नहीं है।
नरवणे ने कहा था कि नेपाल किसी और के इशारे पर विरोध कर रहा
15 मई को जनरल नरवणे ने लिपुलेख दर्रे से 5 किलोमीटर पहले तक सड़क निर्माण पर नेपाल की आपत्ति पर हैरानी जताई थी।नरवणे ने चीन की तरफ इशारा करते हुए कहा था कि संभावना है कि नेपाल ऐसा किसी और के कहने पर कर रहा है। उन्होंने कहा था कि बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन (बीआरओ) की ओर से बनाई गई सड़क काली नदी के पश्चिम में है। इसलिए, मुझे नहीं पता कि वे किस बात का विरोध कर रहे हैं।
लिपुलेख मार्ग के उद्घाटन के बाद नेपाल ने आपत्ति जताई थी
भारत ने 8 मई को लिपुलेख-धाराचूला मार्ग का उद्घाटन किया था। नेपाल ने इसे एकतरफा फैसला बताते हुए आपत्ति जताई थी। उसका दावा है कि महाकाली नदी के पूर्व का पूरा इलाका नेपाल की सीमा में आता है। जवाब में भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि लिपुलेख हमारे सीमा क्षेत्र में आता है और लिपुलेख मार्ग से पहले भी मानसरोवर यात्रा होती रही है। हमने अब सिर्फ इसी रास्ते पर निर्माण कर तीर्थ यात्रियों, स्थानीय लोगों और कारोबारियों के लिए आवागमन को सुगम बनाया है।
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