मेल-इन-बैलट के धुरविरोधी रहे ट्रम्प अब इसके पक्ष में दिखे; कई राज्यों में रिपब्लिकंस कैंपेन चला रहे, नजर एब्सेंटी वोटर्स पर
नार्थ कैरोलिना में रिपब्लिक पार्टी ने अगस्त में ट्रम्प के समर्थक माने जाने वाले लोगों को चमकीली लिफाफों वाली चिट्ठियां भेजीं। इस पर 2.13 लाख डॉलर (करीब 1.5 करोड़ रु.) खर्च किए गए। इनमें राष्ट्रपति के फोटो के साथ अर्जेंट नोटिस लिखकर भेजा गया था।
इसके पीछे एक एब्सेंटी बैलट का एप्लीकेशन भी था। पार्टी ने चिट्ठियों में लिखा था- क्या आप डेमोक्रेट्स को खुद को चुप कराने देंगे? सभी रिपब्लिकंस से अनुरोध किया गया था कि वे मेल इन बैलट पाने के लिए एप्लीकेशन भरकर भेजें।
इसी तरह की अपील के साथ जॉर्जिया, ओहियो, टेक्सास, विस्कॉन्सिन और दूसरे राज्यों के लोगों को भी चिटि्ठयां भेजी गईं थी। यह अलग अलग स्टेट की रिपब्लिकन पार्टी की ओर से एब्सेंटी वोटिंग को प्रोमोट करने की कोशिश थी। इसके लिए लाखों मिलियन डॉलर खर्च किए गए थे। इसके तहत ट्रम्प कैंपेन और इससे जुड़े लोगों ने बड़े पैमाने पर टेक्स्ट मैसेज भेजे और रोबो कॉल्स भी किए।
पार्टी की कोशिशों को खुद ट्रम्प ने कमजोर किया
पार्टी की मेल इन बैलट और एब्सेंटी वोट के जरिए पाला मजबूत करने की कोशिशों को खुद ट्रम्प ने कमजोर किया। उन्होंने बार-बार कहा कि मेल इन वोटिंग में हेराफेरी हो सकती है। यह बात उन्होंने नार्थ कैरोलिना समेत कई जगहों पर कही। ऐसा करके उन्होंने अपने समर्थकों को खुद ही डरा दिया। विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रम्प की ओर से कही गई बातों की वजह से ही रिपब्लिकंस कई राज्यों में लोगों को मेल इन बैलट के लिए अनुरोध करने के मामले में डेमोक्रेट्स से पीछे हैं।
रिपब्लिकन हमेशा से एब्सेंटी वोटों के मामले में आगे रहे हैं
इस साल राष्ट्रपति कैंडिडेट के नॉमिनेशन में ट्रम्प को चुनौती देने वाले मैसाच्युसेट्स के पूर्व गवर्नर और रिपब्लिकन नेता बिल वेल्ड के मुताबिक, यह अविश्वसनीय है। यह साफ तौर पर रिपब्लिकन का वोट बढ़ाने के मकसद से उठाए जाने वाले कदम के उलट है। राष्ट्रपति ऐसी गलती कर रहे हैं, जिसका उन्हें पता ही नहीं चल रहा।
इतिहास पर गौर करें तो रिपब्लिकन हमेशा से एब्सेंटी वोटों पर कब्जा करने की कोशिशों में आगे रहे हैं। वे हमेशा से ऐसा प्रोग्राम चलाते रहे हैं, जिससे ऐसे रिपब्लिकंस की पहचान की जा सके जो मेल के जरिए वोट कर सकते हैं। खास तौर पर फ्लोरिडा में ऐसे कार्यक्रम लंबे समय से चलाए जाते रहे हैं। पार्टी इस बात का भी ध्यान रखती है कि ऐसे लोग अपना बैलट समय से भेज दें।
रिपब्लिक ने 1980 में शुरू की थी एब्सेंटी वोटर्स को जोड़ने की मुहीम
लंबे समय से रिपब्लिकन पार्टी से जुड़े रहे स्टीवेंस स्टुअर्ट ने कहा- मेल इन बैलट के मामले में हम रिपब्लिकंस को हमेशा से यह महसूस होता रहा है कि हम डेमोक्रेट्स से बेहतर है। इसकी शुरुआत 1980 में नेशनल रिपब्लिकन सेनोटोरियल कमेटी के गठन के साथ हुआ।
यह हमारे पार्टी ऑपरेशन्स के लिए किसी मुकुट में जड़े हीरे की तरह रहा। स्टीवेंस ने हाल ही में एक किताब लिखी है जिसमें उन्होंने ट्रम्प और अपनी पार्टी दोनों की आलोचना की है। किताब में उन्होंने दावा किया है कि ट्रम्प अपनी पार्टी के कैंपेन का दम घोंट सकते हैं।
ट्रम्प की वजह से रिपब्लिकन से दूर हो रहे उम्रदराज वोटर
स्टुअर्ट कहते हैं- अगर ट्रम्प चुनाव हारते हैं तो उनकी ओर से मेल इन बैलट पर उठाए गए सवाल इसकी बड़ी वजह हो सकती है। इस मुद्दे पर राष्ट्रपति के बयानों ने उम्रदराज वोटरों को भ्रम में डाल दिए हैं। ये ऐसे वोटर्स हैं जो लंबे समय से पार्टी से जुड़े रहे हैं, लेकिन मौजूदा वक्त में कोरोना महामारी की चपेट में आने से डरते हैं।
उन्हें डर है कि वे अगर वे वोट डालने पोलिंग सेंटर्स पर गए तो संक्रमित हो सकती है, उनकी मौत हो सकती है। अगर ट्रम्प इन बुजुर्ग वोटर्स का समर्थन हासिल करने में नाकाम रहते हैं तो इस रेस में उनकी जीत का कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
डेमोक्रेट्स मेल इन बैलट के लिए रिपब्लिकन वोटर्स से भी मिल रहे
कई विशेषज्ञों का यह मानना है कि इस बार रिपब्लिकंस इस पर मेल इन बैलट के लिए अप्लाई करने के मामले में रिपब्लिकंस से पीछे हैं। नार्थ कैरोलिना स्थित कैटाव्बा कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर जे मिशेल बिट्जर अपने टैली के आधार पर दावा करते हैं कि नार्थ कैरोलिना में डेमोक्रेट्स ने रिपब्लिकंस की तुलना में तीन बार ज्यादा वोटर्स से इसके लिए मिले हैं।
17 सितंबर तक डेमोक्रेट्स ने 8,89,000 मेल बैलट के लिए लोगों से अनुरोध किया है। इनमें से 4 लाख 48 हजार रजिस्टर्ड डेमोक्रेट्स थे और 1 लाख 54 हजार रजिस्टर्ड रिपब्लिकंस थे। बाकी वोटर्स ऐसे थे जो किसी भी पार्टी से नहीं जुड़े थे।
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