नवाज की बेटी मरियम ने कहा- सियासी फैसले संसद में होने चाहिए, आर्मी हेडक्वॉर्टर में नहीं
पाकिस्तान में फौज पर सवाल खड़े करना लगभग नामुमकिन माना जाता है। लेकिन, अब पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, उनकी बेटी मरियम नवाज और पीपीपी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो जरदारी खुलकर फौज की सियासत में दखलंदाजी का विरोध कर रहे हैं। इन लोगों के निशाने पर प्रधानमंत्री इमरान खान से ज्यादा आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा हैं। मरियम ने बुधवार को मीडिया से कहा- सियासी या मुल्क से जुड़े मामलों का फैसला संसद में होना चाहिए, आर्मी हेडक्वॉर्टर में नहीं।
आर्मी और विपक्ष में टकराव क्यों
विपक्ष ने एक फौज की मदद से सत्ता पाने वाले इमरान खान की सरकार को गिराने के लिए कमर कस ली है। 1 अक्टूबर से तमाम विपक्षी दल आंदोलन शुरू करने वाले हैं। 21 सितंबर को विपक्षी नेताओं की बैठक हुई थी। इसमें आंदोलन की रणनीति तैयार की गई। बुधवार को खुलासा हुआ कि आर्मी और आईएसआई चीफ ने 16 सितंबर को विपक्ष के कुछ नेताओं से मुलाकात की थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दोनों अफसर विपक्ष पर आंदोलन रोकने और फौज का नाम न लेने का दबाव बना रहे थे। हालांकि, जाहिर तौर पर यह गिलगित-बाल्टिस्तान को अलग राज्य का दर्जा देने के लिए बुलाई गई मीटिंग थी।
मरियम का जवाब
फौज ने बुधवार को एक बयान जारी कर कहा- नवाज की पार्टी के एक सदस्य मदद के लिए आर्मी चीफ से मिलने आए थे। मरियम ने इस बयान में किए गए दावे को नकार दिया। कहा- मेरे परिवार का कोई सदस्य जनरल बाजवा से मिलने नहीं गया। न ही हमने किसी को उनसे मिलने भेजा। इसके कुछ देर बाद मरियम ने फौज पर सीधा निशाना साधा और देश में लोकतंत्र की हिफाजत करने की नसीहत दी। कहा- सियासी मामले संसद में ही तय होने चाहिए। इसके लिए आर्मी हेडक्वॉर्टर नहीं जाना चाहिए।
बैकफुट पर बाजवा
हाल के दिनों में इमरान और फौज के खिलाफ विपक्षी दलों ने काफी बयानबाजी की है। नवाज और बिलावल कई बार इमरान को इलेक्टेड नहीं, सिलेक्टेड प्राइम मिनिस्टर बता चुके हैं। नवाज ने 21 सितंबर को ऑल पार्टी मीटिंग में कहा था- हमें दिक्कत इमरान के स्पॉन्सर्स (आर्मी) से ज्यादा है। मुल्क में लोकतंत्र जिंदा रहना चाहिए। डिक्टेटरशिप का दौर बीत चुका है। इसके बाद फौज ने कहा- हमारा काम देश को अंदर और बाहर से सुरक्षित रखना है। फौज को सियासत में नहीं घसीटना चाहिए।
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